जाने क्या सुकून मिला
धर्मगुरुओं को, नेताओं को?
बांटकर हम मानव को
बांटकर समाज को, देश को
धर्म तो कहीं कहा नहीं
के बंटो और लड़ो
गर कहा है तो फिर
वो धर्म ही कहां?
धर्म तो देता है अच्छे उपदेश
प्यार व शांति का ही संदेश
जन्म का रास्ता भी है एक
मां का औद्र
और
मौत भी ले जाती है
एक ही जगत की गोद में
भस्म कर या सुलाकर
यानि
उदगम और अंत दोनों एक हैं
बीच के रास्ते के लक्ष्य भी एक हैं
– अच्छा मानव बनना
फिर बांटना किसलिए,
और बंटना क्यों?
जाने क्यों बांटने की ज़िद है
चंद लोगों ने जिसे रोज़गार बना लिया
सुलगाकर हमें, बांटकर हमें
क्योंकि वो ख़ुद समग्रता में
सोच नहीं सकता
और हमें धकेल देता है
जहन्नुम में
जीने को मजबूर,
और ख़ुद
मजे लेता है