अब वो रानाई–ए –ख्याल कहां–२
वो रस भरी रुसवाईयां कहां
तेरे खयालों की तन्हाइयां कहां
ढूंढने से क्या मिलेगा वो सब, जो
रह गई है सिमट के कहानियों में!
तेरे फुरकत में अब तड़पना ही क्यों ?–२
ये मालूम है विसाल ए यार होगा नहीं
सजाना सीख लिया है यादों को मैंने
जिन पन्नों में दर्ज है गुनहगार कोई!
अर्ज़ ए दुनिया तो है के, जी लूं जरा मगर,
अब वो ख्याल ए जौक कहां?
यूं मैकदों में पीना तो सभी करते हैं “बरन”
कभी आ मेरे मजलिस में के ज़ाम ए गजल हो
न खोल अपना मुंह, हर किसी बात पे
बोल तब, जब चुप्पी से बेहतर बात हो
ना कह अब कुछ, धड़कनों ने कह दिया है
अनकही वो बातें सब, दिल ने सुन लिया है
के तेरा अरमान हूं मैं, और तुम मेरा जहान हो
फिर कहना क्या और सुनना क्या?
जब दिल ने दिल को समझा लिया है!!
काश खुद के ही दिए ज़ख्म समझ लेता मैं
दुनियां के हर सितम तो यूं ही सह लेता मैं!
बहुत बदला है खुद को, जीने के लिए
जिंदगी अब कुछ मुझे मुझसा रहने दे
या बदल ऐसा के खुशबु ए हस्ती मेरी
पूरे कायनात में मुसलसल महकती रहे
बेहया बेरंग जमाने में–२ तू रंग भर अपनी सादगी से
बहुत सड़ चला ये महकमा तू हार्पिक कर ताज़गी से
बहुत नजाकत दिखाते हो बातों में तुम अपने
कहीं सड़े विचारों को इस तर्ज छुपाते तो नहीं ?
आह, कितनी मिहनत करते हो इस फर्ज जीने में?
पर क्या दिखा जाते नहीं तुम बेहयाई को अपनी?
तेरी दो आंखों में मेरा जहान दिख गया
अब और क्या चाहूं ए जिंदगी–२,
मुझे मेरा आसमान दिख गया!!
ज़रूरी नहीं ईर्ष्या को हमेशा हम गलत ही कहें
कभी इश्क़वालों से पूछो ये प्यार की गहराई है
अब आग कौन लगाए जलाने के लिए
सच कहने से ही लोग जलने लगे हैं!
तसल्ली है बस इसी तजबीज़ से मुझे –२
कि ये समां है जो सुंदर, तो मेरी सोच से
और जो बदगुमा है तो, मेरी ही सोच से
तो चलो, सोच को नई ऊंचाई दें, नई सोच से
मिट्टी में सबको मिल जाना है एक दिन
गड्डे में गुम या राख ही होना है एक दिन
तो प्यारे प्यारे मीठे जज्बों में घुल जाना सीख
के यही वो खुशबू है जो साथ जाएगी एक दिन
कुछ ऐसा भी कर ए जिन्दगी छोटा–सा एक एहसान कर
कुछ सोचूं और वो मुकम्मल हो, यूं भी एक चमत्कार कर
ज़िंदगी है मुझमें, या मैं जिंदगी में, क्या फर्क पड़ता है?
बस इत्ता सीखा जिंदगी, तेरा गम भी सुकूं की चादर लगे
क्यूं जल रहे हो यूं किसी से ?
क्या कोई जिए ना खुशी से??
क्या सिर्फ तुम रहो खुशी से??
ऐ शराब है कड़वा तू, पर मेरे गम को मीठा करता है
यूं दु:ख को गुदगुदाकर, मेरे दिल को हल्का करता है
ऊंची आवाज़ सुन लेंगे भी लोग, तो बस भूल जाने के लिए
“ऊंची बात” करें जनाब–२,तो रखेंगे याद, जमाने के लिए
अब ये बेरुखी जिन्दगी की खटकती नहीं
तेरे अहवाल की फिक्र ही काफ़ी लगती है
जब भी ए ज़माना हमसे बदगुमां होता है
जीवन को एक नया, फलसफा मिलता है!
कितना ही समझ ज़िंदगी को, क्या समझ पाओगे?
दुःख सुख से भी बेहतर है, क्या ये समझ पाओगे?
तेरे लबों के मीठे लफ्ज़ों से–२, नज़्म बना जाऊंगा
तू मुकम्मल शायरी तो बन, मैं गज़ल गुनगुनाऊंगा
देर से ही सही अब तजुर्बा ए ज़िंदगी क्या खूब मिला है
कुछ चाहा और हासिल हुआ तो समझा के अच्छा है
और जो ना मिला तो भी समझा के अच्छा ही तो है
तेरी बातों से जो यूं उल्फत हो गई है
कमबख्त नींद ही रूखसत हो गई है
कभी खुशबू तेरे़ आह की जो छुकर मुझे गुज़र गई
मेरे दिल के सूखे पत्तों में इक ताज़गी सी भर गई
जो बजा लगे बस करते जाना आगे बढ़कर
रूककर रास्ते में, किसने मंजिलें पाई है?
(बजा – उचित)
ज़िंदगी धुआंधार होके ही तूने, क्या दिया क्या दिया!!
सुकुन–ए–एतवार तो मगर जाता रहा, जाता रहा
इतना हुस्न लेकर कहां जाओगे, ऐ दिलनशीन!
कुछ मेरे पहलू में रख, मुझे भी गुलज़ार कर!!
तू क्या जाने, है ये इश्क ही मेरे कलम की स्याही
उतार के पन्नों में बेबाक तुझे, मशहूर मुझे हो जाने दो
जाने का तो दिल नहीं–२ तेरी दिलकश महफिल से?
फर्ज़ है बस कोई रोके भी मुझे–२, ना जाने के लिए।
सवाल गर उम्दा हो जमाने व मानवता की तरक्की के लिए
तो फर्ज तो बनता है जवाब देना, ज़वाब तलब करना भी
फिर, या तो माशाल्लाह होगा वो जवाब हमसब के लिए–२
या करेंगे बहस खुल्लमखुल्ला हम आगे की बेहतरी के लिए
कभी जो लफ्ज़ लरज़ते थे दबे होंठ में तेरे
इक कशिश चहक जाती थी तब सीने में मेरे
तूने लाख की दरबानी इनपे, पर जज़्बात वो छुपी नहीं
चलो मान भी लो, मेरा दिल धड़कता था धड़कन में तेरे
हम बाज आ गए जहां वालों, अब और गुस्ताखी न करो
तसल्ली हो चली साथ मेरे, अब और ख्वाहिश ना करो!
हसरतों की दुआ है तू काबिल इस कदर बने मेरे लाल,
के ज़माना तुझे देखकर अपना अहले मकाम तय करे
यूं तो चल रही थी हमारे कत्ल की तैयारी खुदा के हिकमतगारों में
पर हमारा ईमान देख खुदा भी जलील हुआ उनकी मरदुदियत पे
हमें तेरे ख्यालों के खयाल तक है जाना
सवालों के असल जवाब तक है जाना
कब तक दूंढूं जवाब तेरे खामोश राज़ में?
कभी खुलो भी –२, ए सरकार मेरे!
मुझे आखरी हिसाब तक है जाना!
जिंदगी कमीनी है कहां से सुख देगी?
तो दुख में मायने ढूंढो और गुनगुनाओ
देख, यहां से कोई नहीं है जिंदा जानेवाला
फिर बेवजह ही सही, क्यों न मुस्कुराओ!
किसी को है धन नसीब, तो किसी को समझ
हां नसीबबानों को है ये दोनों ही नसीब
पर जिसको है समझ नसीब, वो भी है खुशनसीब
आखिर जीने का फलसफा उसे सुकून तो दे गया
हिसाब तो देना पड़ेगा तुझे तुमारे टेढ़े व बिगड़े सोच का
महज़ सीधा सोचने की हिमाकत क्यों नहीं की अब तक
ना करो जिरह, हार जाओगे
लिबरल होने में इतना दम नहीं
सच को छुपा तो लोगे कुछ देर
पर सच मिटाने का दम नहीं
तुझे देखकर लगा था–२, मुझे मेरा जहां मिल गया
और अब लगता है किस लिए मैने तुझे देखा भी था
खामखा कितना अच्छा कहूं, उस दास्तान ए इश्क को,
चाहे वो कितनी ही मासूम क्यों न रही !
उसे कहने में कहीं ये मेरा जहां न बिखर जाए
बेचारा दिल ये कहीं बेवजह न बिफर जाए!!
मुझसे चुप रहा न गया और
तुमसे भी कुछ कहा न गया
इसी पेशोपेश में कुछ गलतफहमी बनी, या शायद नहीं भी,
पर मासूम ये इश्क, पाने को तुझे तरसता रहा तरसता रहा
कुछ ख्वाहिशें रह भी जाने दो, यहां छोड़ जाने को
एक और मकसद होगी पीढ़ियों को, कुछ पाने को
तुझपे मरकर जीना इस कदर महसूस किया है मैंने, के
जिंदगी अब कैसे भी पेश आए–२, फर्क नहीं पड़ता!!
रूठे यार को चाहता तो रोक लेता, इतनी कुबत तो है,
पर जाने दे दिया दिल रोककर, कहीं मोहब्बत जो है
कभी फुर्सत निकालकर इस दिल को पढ़ लेना
लफ्जों से कहां बयां होती है, वो दिली मोहब्बत!
माया ने क्या खेल जमा रखा है, बाहर से भी, अंदर से भी
और आनंद के भी दो रूप बना डाला, सुख और दुःख में
फिर क्यों न परम सच को जानो, हर पल में आनंद के लिए
एक उम्र गुज़र गई, बहुत कुछ हुआ नहीं
सोचता हू चलो आदमी अच्छा हो जाऊं
तेरी महक व तेरे चहकते लफ्जों का नमक कहां से लाऊं
कोई बताए भी मुझे–२, के तेरे जैसा मैं कहां से लाऊं
जहाज डूबते है अंदर के पानी से बाहर के पानी से नहीं
यूं तू भी बारहा अंदर झांक, इस दुनियां में तैरने के लिए!!
तृष्णा को तृप्त करने को ही सुख समझ बैठे हो?
वाह क्या बात है, आह सुलगाके सुख पाने बैठे हो?
दर्द ए नवा तो आंखों से बयां हो गई है, बिनकहे
तेरे दगासाज तबस्सुम में कब तक कैफियत देखूं?
(नवा – आवाज)
जनाजे के जिहाज़ में जो साथ होगा वो भी तेरा नहीं होगा
फिर क्या क्या कमा रहा है तू, कम अज कम वो तो परख
ये शरीर मिला है, बुद्धि मिली है सार्थक धन जनने के लिए
तो देख कहीं निरर्थक शै तो जमा नहीं कर रहा बेवजह !!
(जिहाज – materials going with your dead body)
उफ्फ तेरी शोख नज़र का क्या कहूं–२ देख इसे
तेरे देखने की ही अदा मुसलसल देखता रह गया
अरमां जगाते मन को एक विस्तार दो, ज्ञान से
नहीं तो बस सपनों तक ही तेरे अरमां पूरे होंगे
कब तक छुपाके दर्द अपना जीते जाओगे जनाब
आदतें ये अच्छी कहां, तुम्हें तुमसे जुदा करने की?
मुझे पता है –२ ज्योंहि ये माया का नशा उतर जाएगा
दहाड़ के रो पड़ोगे, के क्यों झूठा जीता रहा बेवजह?
धन के आगे भी जीवन का अर्थ समझे, क्या जनाब?
जबकि ये तो तय है, इसे बेकार छोड़ जाओगे तुम!!
कब तक किसी की भलमनसाहत का आसरा रखोगे
उठ, तू भी भला कर लोगों का, तू क्या नहीं काबिल!!
जाने किस खुमारी में हम उन्हें हमनवा समझ बैठे
साथ तो रहे हैं वो–२, मगर किसी और मिजाज़ से
ऐ ईश्वर, मेरे प्रेम व श्रद्धा की बदौलत तू बैठा है ऊपर
मुझे भी अब लिफ्ट कर, कभी मेरा ये कर्ज अदा कर!
अब तो हर चीज़ जाने क्यों मुझे अच्छी लग रही
कहीं जेनरेशन गैप का डर सताने लगा है क्या?
अपने कायदे व प्रथा भूलने लगे हो, मुसलसल
शायद खुद को बेवजह आजमाने लगे हो!!
वाह रे बचपन क्या नहीं दिलाया था, थोड़ी जिद जताकर
पर ख्वाहिशों ने अब भी ख्वाबों तक मुकाम नहीं पाया है
चलो कुछ वैसी ही ज़िद, फिर से अब भी कर ले ओ वाइज
क्या जाने मंजिल भी वही चाहती हो, पास आने के लिए!!
पूछते हो न इतना मुतमइन क्यूं लगता हूं?
अब जो दर्द में, मैं गम की हंसी देखता हूं!
ये गम है जो ख्यालों के पौधे को पोषण दे फलदार बनाती है
हां खुशी अपनी रिमझिम फुहार से कभी गुदगुदा जाती है
जिंदगी तेरी मर्ज़ी से गुज़र रही है अगर–२
तो क्या कभी रोककर दिखा सकोगे मुझे?
फासले हर सिम्त हैं, खुद से दोस्ती कर लो
बेखबर जमाने में तुम, अपनी ख़बर कर लो
यहां कौन आएगा–२, तेरा गम बांटने को
हौसले साथ रख, जज्बों में तिश्नगी भर लो
मेरे मुकद्दर में बहुत अब बचा नहीं, ए ज़माना
चल उनका राज़ ही कम अज़ कम खास रहने दो
उन्हीं राजों को समेट मैं जी लूंगा सुकूँन से
फिर उन पाक गुनाह को माफ ही रहने दो
गुलों में खुशबुएं नहीं –२ तो फिर गुल कैसा?
दिलों में मोहब्बत नहीं, तो फिर दिल कैसा?
गर इंसानियत नहीं तुझमें, तो फिर इंसान कैसा?
और बगैर इन सबके ऐ खुदा! तेरी खुदाई कैसा!!
अब और क्या चाहूं सौगात तुझसे, ए जिंदगी!!
अपने लबों से उसने मेरे अनकहे मुहब्बत की पजीराई की
मैं उन्हें ये कहते हुए एकटक सा देखता रह गया
उन लफ्जों का वो एहसास ताउम्र मेरे पास रह गया!
(पजिराई – स्वीकार, अंगीकृत)
ए मोहब्बत–२, तेरे नाम का सजदा क्यों ना करूं
तेरे जैसा वो ख़ास ओ अहसास मैं कहां से लाऊं
के तुझे सोच कर–२, गम अपना रास्ता भूल जाती है
कभी देखा नहीं खुदा–२, और तुझमें खुदाई दिख जाती है
कहां मुमकिन! के जैसा चाहो जिंदगी वैसी कटे?
पर कुछ लम्हों में पूरी जिंदगी भी छोटी लगती है
यूं ज़िंदगी भर क्यों किसी का इंतजार रहता है
शायद ज़िंदगी से रूबरू होने का डर रहता है
फिर लगा दिल पे जोर, जा कह दे अपना प्यार
वर्ना कहीं कफ़न में न करना पड़े दीदार उनका !
क्यों नहीं रख देते खुलकर, अपने जज्बातों के बात यहां
ज़िंदगी चहक उठेगी, बस कर ले यारों का एतबार यहां
कहां से लाऊं तुझसा, के कोई इतना खूबसूरत कहां?
वफ़ा से लबालब हो–२, फिर, किसी की ज़रूरत कहां?
चलो बदनाम ही सही, इसमें भी है नाम कहीं
फिर ऐ ज़माना!, क्यों रखूं तेरा एहसान कहीं
क्यों निखारते नहीं –२ हो ज़मीर तुम अपना
खराबियों की खमीर से कैसी बू आ रही है!
कभी अकेले में गुम होकर देखना
खुद में एक दुनियां नजर आएगी
एक बहुत उम्दा मुक्कमल दुनियां
जिसका लुत्फ लेना हम भूल गए हैं !
प्यार वो है –२, जो आंखों में रूह भर दे
और रूह में प्यार की आंखें जगा दे
चलो अब हम गमों को ही बांट लें
बहुत दिन हुए खुशियां नहीं बांटी
मैं बोलकर भी नहीं कह पाता हूं उतना
जितना तू खामोशी से ही कह जाता है!
तेरे ख्यालों में तन्हा वक्त भी हसीं है कितना!!
जो तेरी यादों को सरगोशी से गुदगुदा जाता है
अल्फाजों से अब कह दिया है हमने
बहुत बोलकर कुछ हासिल हुआ नहीं
जा सीख ले ख़ामोशी में रहना, या फिर
आए तो ज़रा खामोशी से तौलकर आए
बहुत अच्छा हुआ जो सोचा, नहीं हुआ–२
कुछ सुंदर वजहों को नए रूप दे रहा हूं!
या भगवन! सबों को इतनी बुद्धि देना
बस हम कभी किसी का बुरा ना सोचें
और जो सोचें तो उस मंजर में, एकबार
अपनी शक्सियत भी देखने की सोचें
वो दर्द वो प्यार मां बाप का, कहां समझा तुमने
समझते रहे बस यूं ही होगा, एक तर्ज़ की तरह
जा कभी बैठ सिरहाने, झांक ले अंतः उनका
के कितने असल थे वो, बिनपूछे फर्ज़ की तरह
आशाएं व उम्मीद से जिंदगी तो है, मगर
निराशा सच्चाई से रूबरू रखती है मुझे
क्या कहूं, हम कितना चाहते हैं तुम्हें,
बस तेरी सलामती हर दुआ में है मेरे
ख्यालों ख्वाब तो तूझसे आगाज़ होने लगे
बेसबब तेरा ज़िक्र हर लफ्ज़ में आने लगे
होश तो रक्खा बहुत, काबू में करने को इसे
कमबख्त दिल ही बेकाबू होके मजे लेने लगे
कहां से लाऊं तुझसा वो दोस्त, के कोई इतना खूबसूरत नहीं
दोस्ती के हुनर से हो लबालब, फिर, किसी की ज़रूरत नहीं
आप भी क्या चीज़ थे जगजीत साहब
औरों से वैसी उम्मीद, क्या की जाए!!
काश ऐसा भी हो–२, मेरा वहम सच हो जाय
तू मेरे पहलू में हो–२, और ज़माना थम जाय
कब, कैसे, और क्यूं कही जाए कोई बात
बस इत्ता ही समझ लूं तो जहां जीत लूंगा
मैं बोलकर भी नहीं कह पाता उतना, ऐ हमनशीं!
जितना तू अपनी मद्धम हंसी से ही कह जाता है!
कुछ नया नहीं होता, कुछ पुराना भी नहीं होता
तजुर्बा रंग बदलता है, ज़माना तो बस वहीं होता
खुशी का रंग लहरा है गम का रंग भी गहरा है
दोनों के होने से ही तो जीवन में रंग सुनहरा है
जानता हूं, बहोत दर्द–ए–जिंदगी है तुझे, लेकिन
जरा झांक तो अंदर, क्या जिगर ने वही कमाई है!?
कहां मय में दम इतना, हां कुछ सुगबुगा देता है दिल में
ये तो टूटा दिल है जनाब, जो मुझे शायर बना जाता है!!
जिंदगी भर जिसे–२ जान कह इतराया,
बेखबर, वही तो मेरी जान खाती रही!
कौन हसरत करे यहां, जफा के ये जमाने हैं
ख़ुदी को कर मजबूत, दर्द तो आने जाने हैं!
एक तरफ जमाने का गम
और एक तरफ़ तेरा गम!
चलो यही गम रहने दो खास,
ये होंगे तो बाकी कम लगेंगे
सोचा था रूठूंगा कभी तो बा–जर्फ ज़िंदगी आएगी मनाने
मगर ज़िंदगी भी सयानी निकली, मुझे ही उसे मनाना पड़ा
कमबख्त वक्त को भी इतना वक्त ना हुआ है नसीब
के शिमला की वादियों में चाय की चुस्की हो नसीब
हर्फों में कहां दम इतना के तुझे छू पाए, कमबख्त
ये तो एहसासों ने पिरोया है छंदों में, तेरी दुआ से!
क्यों डर को जीने लगे हो
खुद पे शक करने लगे हो
जिंदगी आस से चलती है
फिर क्यों बिखरने लगे हो
कहकहों में हाल–ए–दिल तो सुनाना रह गया
कमबख्त, क्यों तेरे जाने के बाद याद आया!!
कुछ लम्हों में तेरा ज़िक्र आया था
मैने कह दिया क्यूं उन्हें बुलाते नहीं
कह गया तस्वीर में दिख रहे हैं वो
और मैने कहा ये ठीक भी तो नहीं
क्यों बैठे हो यूं बिखरे बिखरे
कुछ इरादों से दोस्ती कर लो
बहुत कटी जिंदगी खाली खाली
चलो अब काबिल ए हस्ती कर लो
वो गलियां खुश हो जाती हैं, मेरे आने की आहट से
वो खिड़की खुल जाती है, मेरे खुशबू की सरसराहट से
मैं कहां बिखरा था–२, मुझे दुनियां ने बिखेर दी
ध्यान लगाया अंतः में तो एक चुटकी में समेट ली
क्यों न लिख दूं आसमां पे दास्तां–ए–शायरी
मुरीद का प्यार ही इस क़दर उमड़ पड़ा है
यहां दौरे–ए–जाम चलने दो
किसी की फ़िक्र में शाम ढलने दो
किसी के ज़िक्र में जरा ठहरने दो
क्या ख़बर, सहर हो जायेगी?–२
शब–ए–दास्तान चलने दो, चलने दो
कुछ करम अपने भी रहे हैं बा–असर (असरदार)
वो नहीं आते, उनकी याद आ जाती है
कहते हो वक्त ही तो है गुज़र जाता है
एक लम्हा जुदाई का बस, अटक जाता है
नाहक ही खुश रहने की मुझे आदत हो गई है
दोस्त ही कुछ ऐसे मिले जिंदगी माशूक हो गई है
गठरी एहसासों की पुरानी सही कीमत मुसीसी बढ़ती रही
आओ एक शाम इसकी महक, प्यालों में बांट ले ए दोस्त
किसे छोड़ आऊं अपनी रूहानियत की खुश्बू
यहां फटे हाल में कायनात भटक रही है
तेरी बदगुमानियों का असर यूं गहरा हो चला है
मेरे अक्श पे भी अब तन्हाइयों का पहरा रहता है
वो बदगुमां क्या हुए, अब्र बरस पड़े
कुछ यूं हुआ, मेरे अक्श के अश्क निकल पड़े
कुछ बाकी नहीं, अब मय ही काफ़ी है
कुछ दोस्त मिले नए हां पर पुरानी ही ताज़ी है
गुड़ के मिठासे यारी, मदिरा की मदहोशी
शाम तो है ये भी, पर वो खुमारी बाकी है
मुकम्मल जहां क्या होती है न जानो तो ही अच्छा
बेअक्ल ज़माना तुझे मौत तक समझाएगा
रहो खुश ओ खुर्रम ज़िंदादिली से, ए दोस्त
बेअदब ये जमाना भी अदब सीख जाएगा
बहुत शिदद्दत से था इंतजार में, तेरी एक नज़र के लिए
मिली मशक्कत से नज़र, तो झुक गई नज़ाकत के लिए
वो कहते हैं दूरियां होने से यादें धुंधली हो गईं
मैं कहता हूं दूरियां होने से ही यादें गहरी हो गई
ये जाम ही है जो तुम्हें पास बुलाती है
ये जाम ही है जो ख्यालों में तुम गुदगुदाती हो
ये जाम ही है जो तुम बाहों में सुलाती हो
ये जाम ही है जो तेरी जुल्फें लहराती हैं
जो ये जाम नहीं तो तू क्या तेरे अक्स भी
आंखों के करीने से बेवफा गुज़र जाती है
कहो तो फेंक दूं छलकते जाम –२
गर तू मचल के चली आती है
बहत खूबसूरत हो बताकर जो तुझे खुश करता हूं
समझती हैं तेरी जुल्फें बहोत खूब
बिखरकर चेहरे पे मूझे भी खुश करती है
किसी का क्या जाता है :–२
तेरी बेरूखी से हमारा जहां जाता है
सुना है सारा खत संभाल रखा है
फक्र है, तूने मेरा दिल संभाल रखा है
नाज था, है मुझे मेरी मोहब्बत पे
तूने इसका ईमान संभाल रखा है
उन लम्हों ने लिख दी एक कहानी बा–रूमानी
ऐसा के याद करने का लुत्फ, क्या बयां करूं!!
पूरे दिन हो या पूरी रात हो
जो तुम रहो, तो फिर कोई बात हो
किसे देते हो सजा ये जानकर
कि खुद भी सजा पाते हो वही
वक्त वक्त की बात है, वक्त वक्त की बात है
देखो तो हर वक्त तुम्हारा साथ है (एहसासों में)
On Corona
फजीहत हो गई सारे आलमी फलसफों की
कोरोना की मार ने तो जहान हिला रखा है
आलमी – सांसारिक
जलजलों ने भी कर लिया किनारा अपने फिज़ा से
देखकर कोराेना की बेदर्द बेहयाई
फिज़ा – Nature, प्रकृति
गुज़र रही है कायनात ये किस मुकाम से
जिंदगियां हवा हो रही बस एक ज़ुकाम से
ठहर लेता हूं, बस कुछ वक्त की बात है
मिलेगी फिर ज़िंदगी अपने पुराने हिसाब से
इश्किया शायरी
इतने शीरीं हैं तेरे लब के रकीब
दुत्कार भी खाकर सरशार हुआ
सरशार – मस्त, उन्मत
वो मिरा हाल पूछने आए हैं दूर से
क्या ख़बर नहीं मुझे –२,
वो अपना हाल बताने आए हैं करीब से
On Marriage Anniversary
अब तेरे ही अरमान जीऊंगा मैं
हर फ़रमान तेरे पूरे करूंगा मैं
सोच भी नहीं सकता ज़िंदगी तुझ बगैर ए हमदम
तेरे साथ चले कदमों का ईमान रखूंगा मैं
यूं तो जीना कौन नहीं चाहता हर पल को प्यार से
ये बात कुछ और है के पल मिलता नहीं है प्यार से
बड़े अदब से चल रहा था ज़माना–२
अब हाल ये हो चला फूहड़पन का
जिस्म–नुमाइशी की दुकानों ने नेट पे
बा–ताब गंध फ़ैलाया है हवशीपन का
(बा–ताब – बहुत तीखा, गर्म)
तुझसे आशनाई के भी कितने मजे थे
हॉट काफ़ी थी या तिरे बटन खुले थे
कहां तो हुस्ने नुमाईश की पर्दादारी ही हसीन थी
यहां सरेआम डिजिटल इंतज़ाम भी बेरंगीन है
असलहों रॉकेट मिसाइलों की फैक्ट्री जिंदा रहे
अमीर मुल्कों ने मौत का बाज़ार चला रखा है
देखा यूं तूने आईना पैमाने छलक गए
लड़खड़ाए लब्ज़ मिरे गीत गा दिए
नहीं काबिल, फिर भी नाकाबिल नहीं मैं
सुकूं ए तन्हाई का बसेरा बन बन गया हूं
हौसले ज़िंदा हैं अभी, ये तुम्हें दूं बता
हसरतें भी परिंदा हैं, ये तुम्हें दूं बता
अरे ये ज़रा सी बेरुखी क्या बिगाड़ेगी मेरा दम
उम्मीदें तो पाइंदा है, ये भी तुम्हें दूं बता
(पाइन्दा – अनश्वर)
कितनी ही पी लूं जाम, सहर तक उतर जाएगी
कभी तिरे आंखों से पी लूं, तो उम्र तलक ठहर जाएगी
मंजिल का क्या, शायद होती नही!!
या बदलती है ठिकाना वक्त के माफिक
इसी धुन में नए रास्ते बुने जा रहा हूं
चला जा रहा था चला जा रहा हूं
अरशों से ढूंढ रहा हूं अपने आपको
मिल जाऊं कभी तुम्हें तो इत्तला देना
हम आहिस्ते से जिंदगी तुम्हें पुकारते रहे
तुम भी बेगैरत, बस सुनती रही सुनती रही
हां वो महफ़िल थी जहां थे तुम किसी अपनों के साथ
और ये दिल तफ़रीह कर आया तेरे उन पलों के साथ
तेरी दो आंखों में मुझे मेरा जहां मिल गया
आ देख ऐ जिंदगी, मैं तेरे काबिल हो गया
कभी कभी रोने की वज़ह इतनी माकूल होती है
के खुल के रो लेना उस वजह को सम्मान देती है
एक दिन सब छोड़ चला जाऊंगा, याद रख
आती सांसे तोड़ चला जाऊंगा, याद रख
मुझे काफ़िर समझ कैसा दीन निभाता है तू?
हर जिस्म में मैं “रूह” ही रहता हूं, याद रख
बुराइयों ने इतनी परतें बिछा रखी है जेहन में
उधेड़ते रहे हैं इन्हें, पर अब जान जा रही है
कुछ तरकीब बता दे ऐ मेरे राही–ए–हयात
तो जी लूं बेपनाह जो ये जिंदगी जा रही है
वो गलियां जहां इक अजनबी से मिले थे हम
मोहब्बत गुनगुनाती है धुन मेरे, तेरे एहतराम में
ज़िंदगी है मुझमें या मैं जिंदगी में, क्या फर्क पड़ता है
बस इतना सीखा ऐ जिंदगी तुझे जीता रहूं ज़िंदादिली से
तसल्ली है बस इस तजबीज़ से –२
कि ये समां है सुंदर तो मेरी सोच से
और जो बदगुमां है तो मेरी सोच से
अदब ए महफ़िल भूल गया हूं तेरे ख़्याल में
बहका दिया है मुझे यहां, हुस्न के जमाल ने
गो जाम ए मय ने संभाला है बहुत अबतक
अब तू आए कहीं, तो हो रिहाई नसीब मुझे
मैं जानता हूं, कहां कैसे है मेरी नजरें ख़राब
और उन्हीं नजरों से कमबख्त ख़ुद को अच्छा समझता हूं
है ये जज़्बाती बात या है विकृत सोच का असर
जो भी हो, कम अज कम, खुदी पे सवाल तो बनता है मगर
बीबियों के लिए (जो मैके गई हैं)
तुझे नहीं तेरी महक मिस करता हूं
तुझे नहीं तेरी चेहक मिस करता हूं
तुझे कम तेरी आंखों की हसीं चमक मिस करता हूं
आ भी जाओ के ये घर है “घर” तेरे होने से
ख़बर तो है तूझे मैं क्या क्या मिस करता हूं
हर नजर में मुमकिन कहां है बेगुनाह रहना?
वादा बस ये हो, खुद की नजर में बेदाग रहो
यूं मुझे खराब कहने की आदत तो है नहीं
हां कभी लोगों को आईना दिखा जाता हूं
ऐ सोच! मेरी सोच को शांति दे,
मेरी सोच के अंत:तल को विश्रांति दे
मेरी सोच की सोच में प्रोन्नति दे
विचारों में विवेकी विस्तार लाकर
वो गलियां जहां एक अजनबी से मिले थे हम तुम
मोहब्बत गुनगुनाती है धुन मेरे, तेरे एहतराम में